स्वस्तिक का महत्व

स्वस्तिक : हिन्दू धर्म का अतिगूढ अतिप्राचीन प्रतीक चिन्ह

सनातन धर्म के दो मूल आधार प्रतीक चिन्ह हैं… और स्वस्तिक, ये दोनों मंगलकारक हैं।
संस्कृत में स्वास्तिक शब्द का मतलब सौभाग्य है।

हिन्दू धर्म के प्रत्येक शुभ कार्यों में बाधाओं को दूर करने के लिए श्रीगणेश का आव्हान कर उनके निवास का प्रतीक स्वस्तिक बनाते हैं। स्वस्तिक हर मंगल कार्य में हर स्थान पर कल्याण का प्रतीक है।

श्री गणेश पुराण में स्वस्तिक को जन्म-पालन-नाश की तीनों अवस्थाओं का प्रतीक माना है।
स्वस्तिक के ध्यान से कर्म-अकर्म तथा दुष्कर्म तीनों सुधर जाते हैं।

यही दो चिन्ह हिन्दू धर्म की भावना, भाव, सृष्टि, इतिहास तथा सभ्यता का एक साथ बोध करा देते हैं।

  • स्वस्तिक में सकारात्मक ऊर्जा यानि पॉजिटिव एनर्जी का भंडार है। घर या व्यापार स्थल पर स्वस्तिक चिन्ह अंकित रहने से नजर, है, बाधा, वास्तु दोष नहीं लगता।
  • स्वस्तिक के अनेक अर्थ हैं। यह पुर्लिंग शब्द है। सूचीपत्र, पर्णक, कुक्कुट और शिखा स्वस्तिक के ही नाम हैं।
  • नाग के फन के ऊपर एक नील रेखा होती है। उसे भी स्वस्तिक कहते हैं।
  • धर्म के पवित्र 24 चिन्हों में एक विशेष माना है।
  • वेद में स्वस्तिक को चतुष्पद यानि चौराहा कहा है।
  • स्वस्तिक धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थ का रक्षक भी है।
  • संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान पण्डित रामचन्द्र शास्त्री बझे के कथनानुसार स्वस्तिक कमल का पूर्वरूप है।
  • भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर विराजमान कौस्तुभ मणि स्वस्तिक आकार की है।
  • स्वस्तिक एक प्रकार से सर्वतोभद्र मण्डल है, यानि चारो तरफ से समान है।
  • ब्राह्मी लिपि की पध्दति से स्वस्तिक ही विध्नहर्ता गणपति हैं।
  • स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना है। जितनी ऊर्जा सूर्य में स्वस्तिक में भी उतनी ही है। बस हम समझ या देख नहीं पाते।


जैन धर्म में स्वस्तिक का अर्थ

स्वास्तिक को शुभ और पवित्र चिन्ह माना जाता है।

स्वस्तिक की लाल भुजाएँ पुनर्जन्म की चार संभावित अवस्थाओं (गतियों) का प्रतिनिधित्व करती हैं: मानव, स्वर्ग, नरक और पशु।

स्वास्तिक पर ऊपरी बाएँ कोने से शुरू करके इन चार अवस्थाओं को दक्षिणावर्त दर्शाया गया है।
हमारा लक्ष्य पुनर्जन्म की इन चार अवस्थाओं से मुक्ति होना चाहिए।

स्वस्तिक के ऊपर तीन हरे बिंदु जैन धर्म के तीन रत्नों-सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।

यह मुक्ति के जैन मार्ग का प्रतिनिधित्व करता है।
सबसे ऊपर सिद्धशिला नामक एक छोटा पीला अर्धचंद्र है, जो मुक्त आत्माओं का स्थान है।
वर्धमान के ऊपर की पीली बिंदी एक सिद्ध या एक मुक्त आत्मा का प्रतिनिधित्व करती है।
इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए, एक आत्मा को सभी संलग्न कर्मों को नष्ट करना चाहिए।
हर जीव को मुक्ति या मोक्ष की इस स्थिति के लिए प्रयास करना चाहिए।

6 thoughts on “स्वस्तिक का महत्व

  1. Mukesh Nahar's avatar

    Nice to read

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    1. BMJainSurana-GoodSoulIn's avatar

      Thank you so much for appreciating!

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  2. dailyjotter2's avatar

    Very informative .👌

    Liked by 1 person

    1. BMJainSurana-GoodSoulIn's avatar

      Thank you for appreciating 🙏

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  3. santable's avatar

    अतिसुन्दर

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    1. BMJainSurana-GoodSoulIn's avatar

      शुक्रिया 🙏 अनुमोदन आपका

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