
हे भगवान.. कैसी स्टुपिड सी रिंग दी है मैरिज एनिवर्सरी के दिन भी …अंगुली से निकल ही नहीं रही . जल्दबाजी में पहना तो गया मोहन ..पर लगता है टाइट है …..खैर फर्क भी क्या पड़ता है उसे….. पॉकेट भी तो टाइट कर रखी है मोहन ने …..सोचते सोचते सुधा की आँखो में आँसू आ गए
सुधा को लगा सामने टेबल पर रखा गुलाब का गुलदस्ता भी उसे चिढ़ा रहा है ….. कितना कंजूस है ये मोहन ….. मैरिज एनिवर्सरी के दिन भी सस्ता सा तोहफा पकड़ा दिया जैसे बस औपचारिकता पूरी करनी हो … अब कैसे बताऊंगी किट्टी पार्टी में अपनी फ्रेंड्स को … और पड़ोसन शालिनी ने कहा था
उसका पति मनीष उसकी मैरिज एनिवर्सरी के दिन उसे डायमंड सेट गिफ्ट करेगा …. एक बार तो सुधा का मन हुआ अंगूठी और गुलदस्ता कचरे के डिब्बे में फेंक आये ….. सोने की चमक अनदेखे हीरे की सेट के आगे फीकी लग रही थी ….. उफ्फ….. अब कैसे अपनी दोस्तों को दिखाऊँगी…
मेरी इज्ज़त तो मिट्टी में मिल जाएगी तभी मैन गेट पर लगी बेल की आवाज सुन कर सुधा विचारों के बवंडर से बाहर निकल मैन गेट तक गयी ….. सामने उसकी मैड गीता खड़ी थी ….. माँग भर सिन्दूर,माथे पर बड़ी सी लाल बिन्दी,आंखों में मोटा -मोटा काजल,मुँह में पान ….. मानो आज फैशन शो के लिये आई थी,आज तो नक्शा ही बदला लग रहा था उसका ….. एक तो मूड खराब था उस पर उसका साज श्रृंगार….. सुधा गीता पर चिढ़ कर बोली ” क्यो री आज इतना सज धज कर आई है….सिनेमा जाएगी क्या…. बातों को बीच में काट गीताचाय देती बोली … ” काहे का सनिमा ….आप भूल गयी भाभीजी…
अरे पिछले साल बताया तो था …आपकी अउर मेरी शादी की सालगिरह एक ही दिन आती है … हमरे पति हमरे लिए गजरा ,बिन्दी अउर पान लाये थे ” चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ रही थी गीता के ,हाथों की चूडियों को ऊपर नीचे करते उससे उसकी खुशी संभाले नही संभल रही थी…..
सुधा को गीता की बातों से उब होने लगी … मन बदलने के लिए वो न्यूज चैनल खोल आराम से सोफे पर पसर गई … आतंकी हमले में शहीद सैनिकों के परिवारजन से बात की जा रही थी,उनकी पत्नियों के विलाप सुन कर कलेजा फट गया सुधा का .. पति के बिना कैसी रहेंगी ये.. इनकी तो दुनिया ही उजड़ गई .
.एक पल के लिए मोहन के बिना अपनी जिंदगी को सोचकर सुधा कांप गई …. एक तरफ काम करती गीता का दमकता चेहरा अहसास करा रहा था कि पैसों से प्यार और खुशियां नहीं ख़रीदी जा सकती तो दूसरी ओर पत्नी के चेहरे पर पति से बिछड़ने का गम जिसे कभी भरा नहीं जा सकता… कैसे जीवन कटेगा इनका….
सोचकर सुधा को रुलाई आ गई… हे भगवान…..कहां भटक रही थी मै…. दिखावे के चक्कर में …हाथ आई दो पल की खुशी को भी नहीं जी पा रही थी मैं …. कस्तूरी मृग की तरह खुशियां ढूंढ रही थी मैं … जबकि खुश होना या ना होना तो खुद मुझ पर निर्भर करता है …
सुधा उठी .
और गुलाब के गुलदस्ते को अपने होंठों से चूमा …उसने देखा हाथ में पहनी अंगूठी की चमक अब बढ़ गई थी … आखिर उसके पति मोहन का प्यार जो छुपा था उसमें…..मेरे दोस्तो …..ये प्यार के रिश्ते किसी दिखावे के या दौलत की चमक के मोहताज नहीं है ये
तो बस रूहो के मिलने से एकदूसरे को समझने …चाहे जो स्थिति हो निभाने से बनते है.. “दोस्तों रिश्तो को अकड़ नही आपकी पकड़ चाहिए”….!!

