Samajhadari (Wisdom)

गांव-देहात में एक कीड़ा पाया जाता है, जिसे गोबरैला कहा जाता है।

उसे गाय, भैंसों के ताजे गोबर की बू बहुत भाती है! वह सुबह से गोबर की तलाश में निकल पड़ता है और सारा दिन उसे जहां कहीं गोबर मिल जाता है, वहीं उसका गोला बनाना शुरू कर देता है।
शाम तक वह एक बड़ा सा गोला बना लेता है।

फिर उस गोले को ढ़केलते हुए अपने बिल तक ले जाता है। लेकिन बिल पर पहुंच कर उसे पता चलता है कि गोला तो बहुत बड़ा बन गया मगर उसके बिल का द्वार बहुत छोटा है। बहुत परिश्रम और कोशिशों के बाद भी वह उस गोले को बिल के अंदर नहीं ढ़केल पाता, और उसे वहीं पर छोड़कर बिल में चला जाता है।

यही हाल हम मनुष्यों का भी है।

पूरी जिंदगी हम दुनियाभर का माल-मत्ता जमा करने में लगे रहते हैं और जब अंत समय आता है, तो पता चलता है कि ये सब तो साथ नहीं ले जा सकते और तब हम उस जीवन भर की कमाई को बड़ी हसरत से देखते हुए इस संसार से विदा हो जाते हैं।।


पुण्य किसी को दगा नहीं देता -और पाप किसी का सगा नहीं होता।

जो कर्म को समझता है, उसे धर्म को समझने की जरूरत नहीं पड़ती।

संपत्ति के उत्तराधिकारी कोई भी या अनेक हो सकते हैं, कर्मों के उत्तराधिकारी केवल और केवल हम स्वयं ही होते हैं, इसलिए उसकी खोज में रहे जो हमारे साथ जाना है, उसे हासिल करने में ही समझदारी है।

Leave a comment

search previous next tag category expand menu location phone mail time cart zoom edit close