ऑनलाइन डिलीवरी ??

( कहानी सौजन्य : श्री नरेंद्रभाई केडिया)

एक युवक को अपने पिता के साथ बैंक जाना पड़ा क्योंकि उन्हें कुछ पैसे ट्रांसफर करने थे।
बैंक में जाने के बाद वहां थोड़ा समय लग गया। बैंक में जब घंटा भर बीत गया तो युवक अपने आप को रोक नहीं पाया।
वह अपने पिता के पास गया और बोला: पिताजी, आप अपने अकाउंट पर इंटरनेट बैंकिंग सेवाएं क्यों नहीं शुरू करवा लेते?

पिता ने पूछा: और मुझे ऐसा क्यों करना चाहिए?

बेटा बोला: यदि आप ऐसा कर लेते हैं तो आपको पैसे ट्रांसफर करने जैसे कामों के लिए बैंक में घंटों नहीं बैठना पड़ेगा। इसके बाद, आप अपनी खरीदारी भी ऑनलाइन कर सकते हैं। सब कुछ बहुत आसान हो जाएगा!

बेटा अपने पिता को इंटरनेट बैंकिंग के फायदे दिखाने को लेकर बहुत उत्साहित था।

पिता ने पूछा: अगर मैं ऐसा करता हूं, तो मुझे घर से बाहर कदम नहीं रखना पड़ेगा?

युवक ने बड़े उत्साहित होकर कहा: हां, बिलकुल। आपको कहीं नहीं जाना पड़ेगा। आपके मोबाइल पर बटन दबाकर आर्डर देने की देर है, और आपके घर पर सामान हाज़िर होगा। बेटे ने अपने पिता को बताया कि कैसे अब किराने का सामान भी घर पर पहुंचाया जा रहा है और कैसे अमेज़न जैसी कंपनियां इंसान की ज़रूरत का हर सामन घर पहुंचा देती हैं!

ये सब सुनने के बाद पिता ने जो जवाब दिया उससे बेटे की जुबान पर ताला लग गया।

उसके पिता ने कहा: आज, जब से मैंने इस बैंक में प्रवेश किया है, मैं अपने चार दोस्तों से मिल चूका हूं। पैसे ट्रांसफर करवाने के दौरान मैंने बैंक के कर्मचारियों के साथ थोड़ी देर बात की और वो अब मुझे अच्छी तरह से जानते हैं। तुम्हारे जाने के बाद, मैं बिलकुल अकेला हूं। और मुझे इसी तरह की कंपनी की जरूरत है। मुझे तैयार होकर बैंक आना अच्छा लगता है। समय की दिक्कत तुम्हारी पीढ़ी को होगी, मेरे पास पर्याप्त समय है। मुझे चीज़ों की नहीं, मानवीय स्पर्श की ज़रूरत महसूस होती है।

जवाब सुनकर युवक को झटका लगा।

पिता में आगे कहा: दो साल पहले मेरी तबीयत खराब हो गई थी। जिस दुकानदार से मैं फल ख़रीदता हूँ, उसे पता चला तो वह मुझसे मिलने आया और मेरे हालचाल पूछ कर गया। तुम्हारी माँ कुछ दिन पहले मॉर्निंग वॉक के दौरान गिर पड़ी थी। तो जिस व्यक्ति से मैं किराने का सामान लेता हूँ उसने देखा तो वह तुरंत अपनी कार में तुम्हारी मां को घर छोड़कर गया। तो बेटा, अगर मैं सब कुछ ऑनलाइन लूंगा, तो क्या मेरे पास इस तरह का ‘मानवीय’ स्पर्श होगा?

बेटा कुछ बोलता इससे पहले पिता ने कहा: मैं नहीं चाहता कि सब कुछ मुझ तक पहुंचाया जाए और इसके लिए मैं अपने आप को सिर्फ बेज़ुबान, बिना भावनाओं वाले कंप्यूटर से बातचीत करने के लिए सीमित और मजबूर कर लूँ। जिससे मैं कुछ खरीदता हूँ, वो मेरे लिए सिर्फ एक ‘विक्रेता’ नहीं, उससे मेरे मानवीय संबंध बनते हैं। और ये रिश्ते ही हमें इंसान बनाते हैं, हमारी मानवीय ज़रूरतों को पूरा करते हैं, हमें ज़िंदा महसूस करवाते हैं।

अंत में पिता ने पूछा: क्या कोई कंपनी रिश्ते भी ऑनलाइन डिलीवर करती है ?

रिश्तों की ऑनलाइन डिलीवरी मिलेगी ?

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